Class me meri chut ki dard bhari chudai
Class me meri chut
मेरा नाम गुड़िया है। मैं 12 साल की हूँ और गाँव के सरकारी स्कूल में सातवीं में पढ़ती हूँ। स्कूल में एक टीचर था, विजय सर, जो हिंदी पढ़ाता था। सब उसे अच्छा मानते थे, पर मेरे साथ उसने जो किया, वो मेरे लिए एक दर्द भरी सजा थी, जो बाद में अजीब से मज़े में बदल गई।
उस दिन शाम को स्कूल छूटने के बाद विजय सर ने मुझे रुकने को कहा। बोला, “गुड़िया, तेरी कॉपी में गलतियाँ हैं, थोड़ा समझा दूँगा। मेरे साथ स्टोर रूम चल।” मुझे कुछ समझ नहीं आया, पर सर की बात माननी पड़ती थी। स्कूल खाली हो चुका था। मैं उसके पीछे स्टोर रूम में गई। वहाँ पुरानी किताबें और टूटी बेंचें पड़ी थीं। उसने दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं घबरा गई, पर कुछ बोल न सकी।
विजय सर मेरे पास आया और बोला, “बैठ जा, कॉपी देखते हैं।” मैं एक बेंच पर बैठ गई। उसने कॉपी खोली, पर उसकी नज़रें मेरे चेहरे पर थीं। फिर उसने अचानक मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ सख्त थी। मैंने कहा, “सर, क्या कर रहे हो?” वो हँसा और बोला, “तुझे कुछ सिखाना है।” उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और मेरे कंधे पर हाथ रखा। उसकी उंगलियाँ मेरी पीठ पर फिसलने लगीं। मुझे अजीब लगा, पर समझ नहीं आया कि ये क्या हो रहा है।
उसने मेरी स्कूल की फ्रॉक के ऊपर से मेरी पीठ को ज़ोर से मसला। उसका हाथ नीचे गया, और मेरी कमर को दबाने लगा। मैं शरमा गई, पर कुछ बोल न सकी। फिर उसने मेरी फ्रॉक ऊपर उठाई और मेरी पैंटी में हाथ डाल दिया। उसकी ठंडी उंगलियाँ मेरी जाँघों पर घूमीं, और वो उन्हें ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा। मेरा जिस्म काँपने लगा। मुझे शर्मिंदगी हुई, पर एक अजीब सा गुदगुदापन भी लगा। उसने मेरे कान में कहा, “अच्छा लग रहा है न?” मैं कुछ समझ न सकी, बस सिर झुका लिया।
उसके हाथ मेरे निचले हिस्से पर गए। उसने मेरी पैंटी नीचे खींच दी और मेरे प्राइवेट पार्ट को छूना शुरू कर दिया। उसकी उंगलियाँ वहाँ दबाव डाल रही थीं, और मैं सिहर उठी। मुझे लगा कुछ ग़लत हो रहा है, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वो मेरे जिस्म को मसलता रहा, और मेरे अंदर एक गर्मी सी उठने लगी। मैं विरोध करना चाहती थी, पर मेरा शरीर सुन नहीं रहा था। उसकी हर छुअन से मेरी साँसें तेज़ हो रही थीं। उसने मेरी फ्रॉक पूरी तरह उतार दी, और मैं नंगी उसके सामने थी। मैं शरम से मरी जा रही थी, पर मेरे अंदर की इच्छा जाग चुकी थी।
फिर उसने अपनी पैंट खोली। उसने मुझे बेंच पर लिटा दिया और मेरे पैर फैला दिए। मुझे कुछ समझ नहीं आया कि अब क्या होने वाला है। उसने मेरे ऊपर अपना शरीर डाला, और अचानक मेरे अंदर कुछ घुसा। एक तेज़ दर्द हुआ, जैसे कोई चाकू से चीर रहा हो। मैं चीख़ी, “सर, छोड़ दो, दर्द हो रहा है!” पर उसने मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और ज़ोर से धक्का मारा। खून बहने लगा, और मैं तड़प उठी। मुझे नहीं पता था कि ये इतना दर्द देगा। मैं पछताने लगी कि काश मैं यहाँ न आती। वो मेरे अंदर बार-बार घुसता रहा, और मेरा जिस्म दर्द से चीख़ रहा था। उसका वज़न मुझे कुचल रहा था, और मैं बस रोती रही।
करीब आधा घंटा वो मेरे साथ ये करता रहा। मेरे प्राइवेट पार्ट से खून और पानी बह रहा था। फिर उसने मेरे मुँह से हाथ हटाया और मेरे गले को चूमना शुरू किया। उसने मेरे सीने को ज़ोर से दबाया, और मेरे निपल्स को नोंच डाला। दर्द और बढ़ गया, पर अब मेरे अंदर की गर्मी भी तेज़ हो रही थी। वो मेरे ऊपर चढ़ा रहा, और धीरे-धीरे मेरा दर्द कम होने लगा। करीब एक घंटे बाद मुझे अजीब सा मज़ा आने लगा। मेरा जिस्म अब उसकी हरकतों का जवाब देने लगा था। मैं चीख़ना बंद कर चुकी थी, और मेरी साँसें उसके साथ ताल मिलाने लगी थीं।
दो घंटे तक वो मेरे साथ ये सब करता रहा। उसने मेरे प्राइवेट पार्ट में कई बार पानी छोड़ा, और मेरे मुँह में भी ज़ोर से घुसाकर अपना पानी डाला। मैं खून, पानी और उसकी हवस से लथपथ थी। मेरा दर्द अब मज़े में बदल चुका था। वो मेरे जिस्म को हर तरह से भोगता रहा – कभी मुझे पलटकर, कभी मेरे पैर ऊपर करके। मैं थक चुकी थी, पर मेरा शरीर अब उसकी हवस का साथ दे रहा था। आखिरी बार उसने मेरे अंदर इतना ज़ोर से धक्का मारा कि मैं सिहर उठी, और फिर वो मेरे ऊपर ढेर हो गया।
जब वो उठा, तो उसने अपनी पैंट ठीक की और बोला, “अच्छी लड़की बनकर रहना, वरना फिर बुलाऊँगा।” मैं बेंच पर पड़ी रही, मेरे कपड़े फटे हुए थे, मेरा जिस्म खून और पानी से सना था। मैंने किसी तरह अपनी फ्रॉक लपेटी और घर लौट गई। मम्मी-पापा से कुछ न कहा, क्योंकि डर था। पर वो दो घंटे मेरे जिस्म में बस गए – पहले दर्द, फिर मज़ा, और अब एक अजीब सा खालीपन। विजय सर अब भी स्कूल में है, और मैं उसे देखकर सिहर उठती हूँ।